लिङ्गाष्टकम

लिङ्गाष्टकम् स्तोत्र श्रावण मास में भगवान शिव को प्रसन्न करने का एक सरलतम उपाय है। इस स्तोत्र के सम्बन्ध में शास्त्रों में ऐसा वर्णन है कि जो मनुष्य इसका पाठ करता है, उसे प्रत्येक कठिनाई से निकलने का सरल मार्ग भोलेनाथ स्वयं प्रदान करते हैं। भगवान भोलेनाथ की इस अद्भुत स्तुति में कुल आठ श्लोक हैं। इस अष्टपदी के माध्यम से व्यक्ति भगवान शिव की आराधना करके मनचाहा वरदान प्राप्त कर सकता है। श्रावण मास में इस लिङ्गाष्टकम् का पाठ व श्रवण सारे कष्टों को दूर करने वाला है। इस स्तोत्र की महिमा तीनों लोकों में व्याप्त है। लिङ्गाष्टकम् स्तोत्र भगवान शिव के लिंग स्वरूप की प्रार्थना है। इसमें लिंग सृष्टि का सार्वभौमिक प्रतीक और पदार्थ जगत का उद्गम स्रोत है। इस प्रार्थना में शिव महिमा का वर्णन और लिंग पूजा के लाभों को वर्णित किया गया है। इस स्तोत्र के शुद्ध व स्पष्ट उच्चारण से सर्व दुखों का निवारण होकर मनुष्य शान्ति से ओत-प्रोत हो जाता है। पूर्वजन्म के किसी भी पाप के दुःख का नाश इस स्तोत्र से सम्भव है।

Sandeep Bhatt

7/14/20251 min read

a flower in a glass vase
a flower in a glass vase

ब्रह्म-मुरारि-सुरार्चित-लिङ्गं,

निर्मल-भासित-शोभित- लिङ्गम्।

जन्मज-दुःख-विनाशक-लिङ्गं,

तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ।। 1।।

देवमुनि-प्रवरार्चित-लिङ्गं,

कामदहं करुणाकर लिङ्गम्।

रावणदर्प-विनाशन-लिङ्गं,

तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ।।2।।

सर्वसुगन्धि-सुलेपितलिङ्गं,

बुद्धिविवर्धन-कारण लिङ्गम् ।

सिद्ध-सुरा-ऽ-सुर-वन्दितलिङ्गं,

तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ।।3।।

कनक-महामणि-भूषितलिङ्गं,

फणिपति-वेष्टित-शोभित लिङ्गम् ।

दक्षसुयज्ञ-विनाशकलिङ्गं,

तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ।।4।।

कुङ्कुम-चन्दन-लेपितलिङ्गं,

पङ्कजहार-सुशोभित लिङ्गम् ।

सञ्चित-पाप-विनाशनलिङ्गं,

तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ।।5।।

देवगणार्चित-सेवित लिङ्गं,

भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गं।

दिनकरकोटि-प्रभाकर लिङ्गं,

तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ।।6।।

अष्टदलोपरि-वेष्टित लिङ्गं,

सर्वसमुद्भव-कारणलिङ्गम्।

अष्टदरिद्र-विनाशितलिङ्गं,

तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ।।7।।

सुरगुरु-सुरवर-पूजित लिङ्गं,

सुरवनपुष्प-सदार्चित लिङ्गम्।

परात्परं परमात्मक लिङ्गं,

तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ।।8।।

लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्धिव सन्निधौ।

शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ।।9।।

इति लिङ्गाष्टकम समाप्तम्।